झापस | त्रिलोचन
झापस | त्रिलोचन

झापस | त्रिलोचन

कई कई दिनों से पड़ाव पड़ा हुआ है
बादलों का हिलने का नाम भी नहीं लेते

वर्षा
फुहार, कभी झींसी, कभी झिर्री, कभी रिमझिम
और कभी झर झर झर झर
बिजली चमकती है
चिर्री गिरती है
पेड़ पालो सभी काँपते हैं

सड़के धुली धुली हैं
जैसे तेल लगी त्वचा हाथी की
इक्के दुक्के लोग आते जाते हैं
सैलानी दिखाई नहीं देते
ऐसे में कौन कहीं निकले

READ  दुखड़ा | प्रयाग शुक्ला

दुकानें उदास हैं
बैठे दुकानदार मक्खी मार रहे हैं
काफी हाउस, रेस्त्राँ और होटलों में
चहल पहल पहले की नहीं है
गंगा तट सूना है
गिने चुने स्नानार्थी वही आते हैं
जो यहाँ सदा आते हैं
फूल वाले, पटरी के दुकानदार, भाजी वाले
आज अनुपस्थित हैं

चिड़ियाँ समेटे पंख जहाँ तहाँ बैठी हैं।

READ  प्रथम दर्शन

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *