कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था | त्रिलोचन
कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था | त्रिलोचन

कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था | त्रिलोचन

कोई दिन था जबकि हमको भी बहुत कुछ याद था
आज वीराना हुआ है, पहले दिल आबाद था।

अपनी चर्चा से शुरू करते हैं अब तो बात सब,
और पहले यह विषय आया तो सबके बाद था।

गुल गया, गुलशन गया, बुलबुल गया, फिर क्या रहा
पूछते हैं अब व` ठहरा किस जगह सैयाद था।

READ  रात्रि

मारे मारे फिरते हैं उस्ताद अब तो देख लो,
मर्म जो समझे कहे पहले वही उस्ताद था।

मन मिला तो मिल गए और मन हटा तो हट गए,
मन की इन मौजों प` कोई भी नहीं मतवाद था।

रंग कुछ ऐसा रहा और मौज कुछ ऐसी रही,
आपबीती भी मेरी वह समझे कोई वाद था।

READ  अधगले पंजरों पर | अभिमन्यु अनत

अन्न जल की बात है, हमने त्रिलोचन को सुना,
आजकल काशी में हैं, कुछ दिन इलाहाबाद था।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *