सपने कैसे होंगे पूरे | जगदीश व्योम
सपने कैसे होंगे पूरे | जगदीश व्योम
बाजीगर बन गई व्यवस्था
हम सब हुए जमूरे
सपने कैसे होंगे पूरे।
चार कदम भी चल पाए थे
पैर लगे थर्राने
क्लांत प्रगति की निरख विवशता
छाया लगी चिढ़ाने
मन के आहत मृगछौने ने
बीते दिवस बिसूर।
हमने निज हाथों से
युग-पतवार जिन्हें पकड़ाई
वे शोषक हो गए
हुए हम चिर शोषित तरुणाई
शोषण, दुर्ग हुआ
अलबत्ता
तोड़ो जीर्ण कंगूरे।
वे तो हैं स्वच्छंद करेंगे
जो मन में आएगा
सूरज को गाली देंगे
कोई क्या कर पाएगा
दोष व्यक्ति का नहीं
व्यवस्था में छल-छिद्र घनेरे।
मिला भेड़ियों को
भेड़ों की अधिरक्षा का ठेका
जिन सफेदपोशों को मैंने
देश निगलते देखा
स्वाभिमान को बेंच, उन्हें
मैं कब तक नमन करूँ रे।