राह | केसरीनाथ त्रिपाठी

राह | केसरीनाथ त्रिपाठी

क्षण क्षण गति से बीत रहा है
कैसे इसमें गीत सुनाऊँ
कण कण जो अब बिसर गया है
कैसे उसमें प्रीत लगाऊँ ?

चलो खोज लें वह धारा
जो तिमिर तोड़ दे, पर्वत लाँघे
संवेदन के दीप जला कर
सबको उससे राह दिखाऊँ ?

तृषित बताए जल की महिमा
मृत्‍यु बताए जीवन क्‍या है
जो मरता है, वही अमर है
कैसे किसको मैं समझाऊँ ?

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चेतन मन जो सुप्‍त पड़ा है
झकझोरे या कौन जगाए
आत्‍मलीन है व्‍यक्ति जगाए
स्‍वेद बिंदु अब किधर बहाऊँ ?