जब राजा मरास सोने की एक बहुत बड़ी अर्थी बनाई गई जिस पर रखा गया उस का शव शानदार शव जिसे देखकर कोई कह नहीं सकता कि वह राजा नहीं है
सबसे पहले मंत्री आया और शव के सामने झुककर खड़ा हो गया
फिर पुरोहित आया और न जाने क्या कुछ देर तक होठों में बुदबुदाता रहा फिर हाथी आया और उसने सूँड़ उठाकर शव के प्रति सम्मान प्रकट किया फिर घोड़े आए नीले-पीले जो माहौल की गंभीरता को देखकर तय नहीं कर पाए कि उन्हें हिनहिनाना चाहिए या नहीं फिर धीरे-धीरे बढ़ई धोबी नाई कुम्हार – सब आए और सब खड़े हो गए विशाल चमचमाती हुई अर्थी को घेरकर
अर्थी के आसपास एक अजब-सा दुख था जिसमें सब दुखी थे मंत्री दुखी था क्योंकि हाथी दुखी था हाथी दुखी था क्योंकि घोड़े दुखी थे घोड़े दुखी थे क्योंकि घास दुखी थी घास दुखी थी क्योंकि बढ़ई दुखी था…
होंठ | केदारनाथ सिंह होंठ | केदारनाथ सिंह हर सुबहहोंठों को चाहिए कोई एक नामयानी एक खूब लाल और गाढ़ा-सा शहदजो सिर्फ मनुष्य की देह से टपकता है कई बारदेह से अलगजीना चाहते हैं होंठवे थरथराना-छटपटाना चाहते हैंदेह से अलगफिर यह जानकरकि यह संभव नहींवे पी लेते हैं अपना सारा गुस्साऔर गुनगुनाने लगते हैंअपनी जगह…
सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह सृष्टि पर पहरा | केदारनाथ सिंह जड़ों की डगमग खड़ाऊँ पहनेवह सामने खड़ा थासिवान का प्रहरीजैसे मुक्तिबोध का ब्रह्मराक्षस -एक सूखता हुआ लंबा झरनाठ वृक्षजिसके शीर्ष पर हिल रहेतीन-चार पत्ते कितना भव्य थाएक सूखते हुए वृक्ष की फुनगी परमहज तीन-चार पत्तों का हिलना उस विकट सुखाड़ मेंसृष्टि पर पहरा…
सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए | केदारनाथ सिंह भर लोदूध की धार कीधीमी-धीमी चोटेंदिये की लौ की पहली कँपकँपीआत्मा में भर लो भर लोएक झुकी हुई बूढ़ीनिगाह के सामनेमानस की पहली चौपाई का खुलनाऔर अंतिम दोहे कासुलगना भर लो…
सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह सन ४७ को याद करते हुए | केदारनाथ सिंह तुम्हें नूर मियाँ की याद है केदारनाथ सिंहगेहुँए नूर मियाँठिगने नूर मियाँरामगढ़ बाजार से सुरमा बेच करसबसे आखिर मे लौटने वाले नूर मियाँक्या तुम्हें कुछ भी याद है केदारनाथ सिंहतुम्हें याद है मदरसाइमली का पेड़इमामबाड़ा तुम्हें याद…
सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह सुई और तागे के बीच में | केदारनाथ सिंह माँ मेरे अकेलेपन के बारे में सोच रही हैपानी गिर नहीं रहापर गिर सकता है किसी भी समयमुझे बाहर जाना हैऔर माँ चुप है कि मुझे बाहर जाना है यह तय हैकि मैं बाहर जाऊँगा तो माँ…