आँकुसपुर | केदारनाथ सिंह
आँकुसपुर | केदारनाथ सिंह

आँकुसपुर | केदारनाथ सिंह

आँकुसपुर | केदारनाथ सिंह

आँकुसपुर
रुकी नहीं ट्रेन
हमेशा की तरह धड़धड़ाती हुई आई
और चली गई छोड़कर आँकुसपुर

सिर्फ दसबजिया यहाँ रुकती है
कहा एक यात्री ने
दूसरे यात्री से।

क्यों ?
आखिर क्यों ?
फिर पृथ्वी पर क्यों है आँकुसपुर –
जब रहा नहीं गया
तो तार पर बैठी एक चिड़िया ने पूछा
दूसरी चिड़िया से

केदारनाथ सिंह की रचनाये

होंठ | केदारनाथ सिंह

होंठ | केदारनाथ सिंह होंठ | केदारनाथ सिंह हर सुबहहोंठों को चाहिए कोई एक नामयानी एक खूब लाल और गाढ़ा-सा शहदजो सिर्फ मनुष्य की देह से टपकता है कई बारदेह से अलगजीना चाहते हैं होंठवे थरथराना-छटपटाना चाहते हैंदेह से अलगफिर यह जानकरकि यह संभव नहींवे पी लेते हैं अपना सारा गुस्साऔर गुनगुनाने लगते हैंअपनी जगह…

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सूर्यास्त के बाद एक अँधेरी बस्ती से गुजरते हुए |केदारनाथ सिंह

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