यकीनों की जल्दबाजी से | कुँवर नारायण
यकीनों की जल्दबाजी से | कुँवर नारायण

यकीनों की जल्दबाजी से | कुँवर नारायण

यकीनों की जल्दबाजी से | कुँवर नारायण

एक बार खबर उड़ी
कि कविता अब कविता नहीं रही
और यूँ फैली
कि कविता अब नहीं रही !

यकीन करनेवालों ने यकीन कर लिया
कि कविता मर गई
लेकिन शक करने वालों ने शक किया
कि ऐसा हो ही नहीं सकता
और इस तरह बच गई कविता की जान

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ऐसा पहली बार नहीं हुआ
कि यकीनों की जल्दबाजी से
महज एक शक ने बचा लिया हो
किसी बेगुनाह को ।

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