मैं पत्थर हूँ | कमलेश द्विवेदी
मैं पत्थर हूँ | कमलेश द्विवेदी

मैं पत्थर हूँ | कमलेश द्विवेदी

मैं पत्थर हूँ | कमलेश द्विवेदी

मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।
मैं रस्ते की ठोकर भर हूँ।

पहले तुमने मुझे उठाया।
मंदिर में रख मान बढ़ाया।
पूजन-अर्चन-वंदन करके,
ईश्वर जैसा मुझे बनाया।
पूजन कर क्यों फेंका बाहर
खंडित पड़ा किनारे पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।

READ  सॉनेट – 1 | नामवर सिंह

आनेवाले फिर आएँगे।
जानेवाले फिर जाएँगे।
फिर मारेंगे मुझको ठोकर,
फिर सब चोटें पहुँचाएँगे।
फिर सबके पैरों से अनगिन,
चोटें खाने को तत्पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।

शायद कोई देखे आकर।
ले जाए फिर मुझे उठाकर।
गंगाजल में करे विसर्जित,
कुछ अक्षत कुछ फूल चढ़ाकर।
किसी और के हाथ विसर्जित
होने से यों ही बेहतर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।

READ  प्रेम उमंगित और तरंगित | कृष्ण कुमार

पत्थर कहाँ सतह पर ठहरे।
वो पानी में डूबे गहरे।
जिस पर “उसका” नाम लिखा हो,
केवल वो ही ऊपर तैरे।
मुझ पर “अपना” नाम लिखो तुम,
पड़ा तुम्हारे ही दर पर हूँ।
मैं पत्थर था मैं पत्थर हूँ।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *