नैहर आए | कमलेश
नैहर आए | कमलेश

नैहर आए | कमलेश

नैहर आए | कमलेश

घूँघट में लिपटे तुम्हारे रोगी चेहरे के पास
लालटेन का शीशा धुअँठता जाता है
साँझ बहुत तेजी से बीतती है गाँव में।

भाई से पूछती हो – भोजन परसूँ?
वह हाथ-पाँव धोकर बैठ जाता है पीढ़े पर
– छिपकली की परछाईं पड़ती है फूल के थाल में।

READ  कंचन मृग | ब्रजराज तिवारी

आँगन में खाट पर लेटे-लेटे
बरसों पुराने सपने फिर-फिर देखती हो
– यह भी झूठ!
महीनों हो गए नैहर आए।

चूहे धान की बालें खींच ले गए हैं भीत पर
बिल्ली रात भर खपरैल पर टहलती रहती है
माँ कुछ पूछती है, फिर रुआँसी हो जाया करती है।

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *