मत उदास रहो | ओम प्रकाश नौटियाल
मत उदास रहो | ओम प्रकाश नौटियाल
घबराहट क्यों प्रीतम इतनी,
है ऐसी क्या उलझन इतनी,
जीवन में कई सवेरे है,
फिर क्यों चिंता के डेरे हैं,
बस मस्त रहो, बिंदास रहो,
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
चाहत जितनी तुम पालोगे
परछाईं पीछे भागोगे,
झूठे, कल्पित सुख की खातिर
यूँ कितनी रातें जागोगे ?
सुख पाने की इस चाहत में
दुख का क्यों बनकर ग्रास रहो !
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
इक सच्चा है इक साया है
सुख दुख की ऐसी माया है,
दोनों हैं चलते साथ साथ
सबने ही इनको पाया है,
तुम दूर रहो या पास रहो
पर ना इनके तुम दास रहो !
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !
हो प्यार आपका मंत्र तंत्र
पर मत इसके आधीन रहो,
बाँटो बाँटे से बढ़ता है
न मिला तो क्यों गमगीन रहो,
दिन में तो सभी चमकते हैं
बन तिमिर में भी प्रकाश रहो !
मत व्यर्थ में तुम उदास रहो !