बड़ी अजीब कहानी है।
सिर के ऊपर पानी है॥

दिन भर मंदिर, कंठी, माला,
रात में मदिरा जॉनी है॥

बाहर सत्य, अहिंसा, गाँधी,
अंदर उल्टी बानी है॥

जलन, फरेब भरा रग-रग में
मिटा आँख का पानी है॥

धोखे पर आकाश टँगा है
ढहता छप्पर-छानी है॥

देश-विदेश बैंक के खाते
किंतु दीवालिया रानी है॥

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समरथ को कुछ दोष नहीं है
दुर्बल की पिट जानी है॥