पागलखाने की खिड़कियाँ | ईमान मर्सल
पागलखाने की खिड़कियाँ | ईमान मर्सल

पागलखाने की खिड़कियाँ | ईमान मर्सल

पागलखाने की खिड़कियाँ | ईमान मर्सल

(कविता सीरिज से पाँच कविताएँ)

1.
नींद की स्मृति

अधसोई दादी एक अंधे कमरे में गा रही है
एक चमगादड़ खिड़की से टकरा जाती है और यथार्थ के खून के छींटे किसी पर नहीं पड़ते
शायद इसलिए कि खिड़कियाँ महज एक विचार होती हैं
दादी माँ गाती है
और किसी दूसरे शहर से सिंदबाद प्रगट हो जाता है
और सिंड्रेला अपने पंजों पर चलती घर लौट आती है
और एक आलसी मुर्गा इंद्रधनुष को देख बाँग देता है
कोने में प्रेतात्माओं का ढेर लग जाता है
रुई से बने गद्दे पर सुरक्षा के पंख दमकने लगते हैं
और हम सो जाते हैं.

2.
महीन रेखा

अधेड़ उम्र की एक औरत पागलों की तरह अपने प्रेमी की कमीजें फाड़ती है
वह उन पर अपने आँसुओं को खारिज करती है कैंचियों के जरिए, फिर नाखूनों से
फिर नाखूनों और दाँतों के जरिए
मेरी कुँआरी बुआ ऐसे दृश्य पर रोया करती थी पिछली सदी में, जबकि मैं
ऊबकर उसके खत्म हो जाने का इंतजार करती थी,
मुझे रुला देते हैं अब ऐसे दृश्य
कैंचियों, नाखूनों और दाँतों से एक स्त्री
एक अनुपस्थित देह का पीछा करती है
उसे चबाकर, उसे निगलकर
कुछ भी नहीं बदला है नायिकाएँ हमेशा दुख पाती हैं परदे पर,
लेकिन उत्तरी अमेरिका में आर्द्रता का स्तर हमेशा कम रहता है
सो, आँसू बहुत जल्दी सूख जाते हैं

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3.
सेक्स 

जिसे वे ‘सेक्स’ कहते हैं
एक ट्रैजेडी है
संभव है कि मैंने अपना सिर आसमान तक उठाया होता तो कोई चाँद मुझे चौंका देता
या मुझे लगता है, किसी जंगल में जानवरों की तरह भटक रहे हैं मेरे सवाल

बाहर
कारों की चमकती रोशनियों के सहारे पुल पार कर रहा है शहर
इस तरह साबित किया जा सकता है कि दुनिया वजूद में है

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पूरी दुनिया ऐसा नाइटगाउन पहनती है जो घुटनों के ऊपर से कटा हुआ है
और पूरी रात यह दुनिया कभी समय नहीं देखती जैसे कि
वह किसी की प्रतीक्षा ही नहीं करती
यह पुरानी ट्रैजेडी यहाँ खत्म हो जाएगी
और अगली खिड़की के पीछे शुरू हो जाएगी.

4.
संपादकीय कक्ष 

एक बार मैंने एक साहित्यिक पत्रिका के संपादक के रूप में काम किया
और पूरी दुनिया धूल से ढकी एक पांडुलिपि में तब्दील हो गई
चिट्ठियों के ढेर थे जिन पर देश की डाक-व्यवस्था के प्रति अटूट विश्वास के टिकट लगे थे
और जहाँ तक मैंने सोचा था कि यह काम बड़ा उबाऊ होगा,
डाक-टिकटों को उखाड़कर निकालना सबसे मजेदार काम बन गया
उन पर उन कमबख्त लेखकों की थूक सूख चुकी थी
उस संपादकीय कक्ष में रोज-रोज आना यानी
अपने आप को एक कोने में ‘पार्क’ कर देना
जैसे नमकीन पानी में अपना कॉन्टैक्ट लेंस सँभालकर रखना
मेरे पास सिर्फ अवसाद था जिससे मैं दूसरे लोगों का अवसाद माप सकती थी
जाहिर है, यह उस पत्रिका के लिए अनुकूल नहीं था जो एक समाजवादी भविष्य का स्वप्न देखती थी
संपादकीय कक्ष में कोई बाल्कनी नहीं थी
लेकिन दराजें कैंचियों से भरी हुई थीं

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5.
पितृत्व

भले मैं एक अनाथ कि़स्म के लेखन का स्वप्न भी नहीं देखती
वे लोग मुझे हँसा देते हैं
जो अपनी रचनाओं को अपने बच्चों की तरह मानते हैं
वे सब मुझे हँसा देते हैं
उन्हें अपनी रचनाओं को खाना खिलाना पड़ता होगा
और जैसे गड़रिया करता है बकरियों के झुंड की रखवाली,
उन्हें भी करना पड़ता होगा
ताकि वे उनका दूध दुह सकें
जब तक कि वे उन्हें अच्छी सरकारी नौकरियाँ न दिला दें

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