तसवीर बन गई | आरती
तसवीर बन गई | आरती

तसवीर बन गई | आरती

तसवीर बन गई | आरती

मैंने कुछ कहना चाहा
बरबस तुम्हारा नाम आया
मैं सुनना चाहती थी कोई गीत
बोल तुम्हारे कानों में खनखनाने लगे
रात दो बजे मैं जाग रही हूँ
कविता लिखने की कोशिश करती
मेरी कलम चलती रही
तुम्हारी तसवीर बन गई

READ  मखमल की बोरी | रविकांत

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *