प्रेम के लिए जगह | अशोक वाजपेयी
प्रेम के लिए जगह | अशोक वाजपेयी
उसने अपने प्रेम के लिए जगह बनाई
बुहार कर अलग कर दिया तारों को
सूर्य-चन्द्रमा को रख दिया एक तरफ
वनलताओं को हटाया
उसने पृथ्वी को झाड़ा-पोंछा
और आकाश की तहें ठीक कीं
उसने अपने प्रेम के लिए जगह बनाई