स्थगित समय में | अमरेंद्र कुमार शर्मा

स्थगित समय में | अमरेंद्र कुमार शर्मा

1

मेरे समय में
रचती हो तुम अपने समय का ईश्वरहीन बसंत

2

तुम्हारे समय में
अनार के पौधे की हरियाली
और उड़हुल के फूल की ललाई का
नहीं है कोई रचना विधान
रात और दिन के अंतर की कोई गंध नहीं
चिड़ियों की कुहक का कोई राग भी नहीं ठहरती
तुम्हारे समय में
खामोश उदासी का बोधिवृक्ष हरा है हमेशा

See also  जल मेरे भीतर | ए अरविंदाक्षन

3

तुम्हारे समय में
रचता हूँ मैं अपने समय की ईश्वरहीन होली

4

मेरे समय में – तुम्हारे लिए
टाँक देना चाहता हूँ उल्लास को
तुम्हारी खिड़की के बाएं छोर पर
जहां से भूख की दोपहरी हमेशा ताकती है समन्दर
और तुम्हारी तड़प समुद्री लहर का हिस्सा होती है .
तुम्हारे आदिम स्त्री भय को
सोख लेना चाहता हूँ मैं
अपनी पलाश-आत्मा के गंधहीन फूलों में

See also  दीर्घविराम | अंकिता आनंद

5

मेरे समय में स्थगित है प्यार
स्थगित है जन-सुनवाइयां
और तमाम आंदोलनों के स्थगन का आदेश जारी कर दिया गया है
ईश्वरहीन त्योहारों , मौसमों को मनाने की मनाही है
प्यार सुनवाइयां, आंदोलन और मौसमों का घटित होना
मेरे समय में कम्प्यूटर के सोशल साइट्स का हिस्सा है
गोदाम में अनाजों को जानबूझकर सड़ाया जा रहा है
जिसे बेचा जाना है शराब बनाने के कारखानों को
और भूख से मरते बच्चे
मेरे देश का घोषित राष्ट्रीय शर्म है
मैं लोककल्याणकारी देश का स्थगित नागरिक हूँ

See also  उत्तर दो | इसाक ‘अश्क’