ईश्वर नहीं नींद चाहिए | अनुराधा सिंह
ईश्वर नहीं नींद चाहिए | अनुराधा सिंह

ईश्वर नहीं नींद चाहिए | अनुराधा सिंह

ईश्वर नहीं नींद चाहिए | अनुराधा सिंह

औरतों को ईश्वर नही
आशिक नहीं
रूखे फीके लोग चाहिए आस पास
जो लेटते ही बत्ती बुझा दें अनायास
चादर ओढ़ लें सर तक
नाक बजाने लगें तुरंत

नजदीक मत जाना
बसों ट्रामों और कुर्सियों में बैठी औरतों के
उन्हें तुम्हारी नहीं
नींद की जरूरत है

READ  धान जब भी फूटता है | बुद्धिनाथ मिश्र

उनकी नींद टूट गई है सृष्टि के आरम्भ से
कंदराओं और अट्टालिकाओं में जाग रहीं हैं वे
कि उनकी आँख लगते ही
पुरुष शिकार न हो जाएँ
बनैले पशुओं/ इनसानी घातों के
जूझती रही यौवन में नींद
बुढ़ापे में अनिद्रा से

नींद ही वह कीमत है
जो उन्होंने प्रेम परिणय संतति
कुछ भी पाने के एवज में चुकाई
सोने दो उन्हें पीठ फेर आज की रात
आज साथ भर दुलार से पहले
आँख भर नींद चाहिए उन्हें।

READ  कुछ आकाश | प्रेमशंकर शुक्ला

Leave a comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *