तुम अगर आओ | अनुज लुगुन
तुम अगर आओ | अनुज लुगुन

तुम अगर आओ | अनुज लुगुन

तुम अगर आओ | अनुज लुगुन

अगर तुम आना चाहो
तो आओ
एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए
भोर के सूरज की तरह
पहाड़ियों पर
और लीप दो
उजासपन के गोबर।
अगर तुम आना चाहो
तो आओ
हमारे जंगलों में
वसंत के बयार की तरह
और सूखी डंठलियों पर भर दो
नई कोंपलें।
अगर तुम आना चाहो
तो आओ
हमारी जमीन पर
बादलों की बेबसी की तरह
और हरी कर जाओ
हमारी कोख।
अगर तुम आना चाहो
तो आओ
हमारी नदियों पर
पंडुक की तरह
और अपनी चोंच से
इसकी धार पर संगीत दे जाओ।
अगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ
तुम्हारे आने पर
तो –
पहाड़ों से उतर आएँगे
हमारे देवता
आग बरसाने के लिए
हमारे पुरखों की पवित्र आत्माएँ
उठ खड़ी होंगी
अपने सीने का पत्थर
हाथ में लिए हुए।
अगर ऐसा भी कुछ नहीं हुआ
तो हमारी माताओं और बहनों को भी
सामने खड़े पाओगे
तीर-धनुष और कुल्हाड़ी लिए हुए
हमारी कलाओं में नहीं है
कुछ भी धोखे से हासिल करना।

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