तुमसे मिलना एक आखिरी बार | अंकिता रासुरी

तुमसे मिलना एक आखिरी बार | अंकिता रासुरी

तीस की उम्र में मिलना
चालीस के हो चुके पहले प्रेमी से
बदल चुके हैं सारे समीकरण
सोलह और छब्बीस वाले रूमानी खयाल अब नहीं आते
आज यूँ इतने वर्षों बाद मेरे सामने एक छब्बीस वर्षीय प्रेमी नहीं है
एक चालीस वर्षीय आदमी खड़ा है
कुछ पक चुके बालों से झाँक रहा है एक लंबा समय
जिसमें कि बहुत कुछ भुलाया जा चुका है
लकीरें कुछ और बढ़ चुकी हैं तुम्हारी हथेलियों की
शायद मेरी भी
ना तो अब तुम्हारे वो लकड़ी चीरते हाथ हैं
ना अब मेरे ओखल में धान कूटते हाथ हैं
ना ही इन हथेलियों से बुझती है प्यास
धारे के ठंडे पानी की जगह
बिसलेरी की बोतल है
ठेठ केमुंडाखाल से लेकर
इंडिया गेट की दूरी सिर्फ भौगोलिक दूरी नहीं रह गई है
यहाँ तक पहुँचते पहुँचते हम तुम गँवा चुके हैं एक उम्र
एक वक्त प्रेम का जो कभी लौट ही नहीं सकता
एक सपना जो अब बहुत गहरी नींद सो चुका है
एक फासला जिसमें तुम्हारा एक घर है
एक फासला जिसमें
मैं मिटाती रही बने हुए घरों के नक्शों को
ओ मेरे चुके खो प्रेमी
तुम से मिलना आज मेरी देह की जरूरत नहीं
तुम से मिलना एक आखरी बार
एक धूमिल पड़ चुकी छवि से आश्वस्त हो जाना है
कि अब कोई नहीं है खड़ा मेरे इंतजार में
बांज के उस सूख चुके वृक्ष के पीछे

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