​बेटी से माँ का सफ़र  (बहुत खूबसूरत पंक्तिया , सभी महिलाओ को समर्पित)

बेटी से माँ का सफ़र 

बेफिक्री से फिकर का सफ़र

रोने से चुप कराने का सफ़र

उत्सुकत्ता से संयम का सफ़र
पहले जो आँचल में छुप जाया करती थी  ।

आज किसी को आँचल में छुपा लेती हैं ।
पहले जो ऊँगली पे गरम लगने से घर को उठाया करती थी ।

See also  नादान दोस्त | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

आज हाथ जल जाने पर भी खाना बनाया करती हैं ।

 

छोटी छोटी बातों पे रो जाया करती थी

बड़ी बड़ी बातों को मन में  रखा करती हैं ।
पहले दोस्तों से लड़ लिया करती थी ।

आज उनसे बात करने को तरस जाती हैं ।
माँ कह कर पूरे घर में उछला करती थी ।

See also  धिक्कार | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

माँ सुन के धीरे से मुस्कुराया करती हैं ।
10 बजे उठने पर भी जल्दी उठ जाना होता था ।

आज 7 बजे उठने पर भी 

लेट हो जाता हैं ।
खुद के शौक पूरे करते करते ही साल गुजर जाता था ।

आज खुद के लिए एक कपडा लेने में आलस आ जाता हैं ।
पूरे दिन फ्री होके भी बिजी बताया करते थे ।

See also  घमण्ड का पुतला | मुंशी प्रेमचंद | हिंदी कहानी

अब पूरे दिन काम करके भी फ्री 

कहलाया करते हैं ।
साल की एक एग्जाम के लिए पूरे साल पढ़ा करते थे।

अब हर दिन बिना तैयारी के एग्जाम दिया करते हैं ।
ना जाने कब किसी की बेटी 

किसी की माँ बन गई ।

कब बेटी से माँ के सफ़र में तब्दील हो गई..!